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भ्रष्ट कौन सत्ता या समाज

भ्रष्ट कौन -सत्ता या समाज
भ्रष्ट कौन -सत्ता या समाज
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भ्रष्ट कौन – सत्ता या समाज — आज पूरे देश में हाहाकार मचा है भ्रष्टाचार,अनैकतिकता,अराजकता ,व्यभिचार,का..कोई जुटा है भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन में और कोई अनैतिकता,व्यभिचार मिटाने के नाटक में.. क्या है ये सब ??? और क्यों ??? कितनी सचाई है इन सब में ??? क्या ये जो नेता दिखा रहे है वो सत्य है ? नहीं ..हर अनशन में स्वार्थनिहित है जिसमे वो लोग जनता का भला नहीं कर रहे अपनी दबी हुई इच्छाओं लोभ मोह को पूर्ण करते है “ भ्रष्टाचार हटाओ “कह देने से क्या भ्रष्टाचार मिट जायेगा ??? नहीं .. मेरा तो कहना है कि भ्रष्टाचार , अनैकतिकता ,व्यभिचार,अराजकता मिटाना है तो ये नेताओ और राजनैतिक लोगो के वश में नहीं क्यूंकि वो पूर्णता लिप्त है इन्ही बुराइयों में.. सो इन को दूर करने के लिए जनता को आगे आना होगा इन बुराईयों को दूर करने का बीड़ा उठाना होगा क्योंकि जनता ही जब इन बातो के प्रति जागरूक होगी तभी क्रांति आएगी सबसे महतवपूर्ण ये है कि देशवासियो को अपने “मौलिक अधिकारों “ का पूर्ण ज्ञान होना जरुरी है अपने मौलिक अधिकारों कि जानकारी जनता को होगी तभी उन्हें ज्ञात होगा कि जिन नेताओ कि तरफ जनता अपनी आवश्यकताओ को पूरा करने जिन हको को को पाने के लिए नेताओ के ऊपर आश्रित है उम्मीद भरी नज़रों से देखते है उन नेताओ को तो उन्ही ( जनता ) ने चुना है यानि वो नेता जो उच्च पदों पर आसीन है उससे वो राजा तो नहीं हो गए जनता के नौकर ही है जनता ने इन्हें आसन(कुर्सी) सौंपा ..कि लो इस पर बैठो और हमारे लिए कार्य करो निस्वार्थ भावना से पर हमारे चुने हुए प्रतिनिधि यानि नेता स्वार्थी हो जाते है को लो जी कुर्सी मिल गई यानि सत्ता मिल गई अतार्थ शक्ति (पॉवर) मिल गई ५ सालो के लिए लूट लो जितना लूट सको..सत्ता यानि शक्ति (पॉवर) तब उनपर उनकी बनाई नीतियो पर हमारा वश नहीं रह जाता ये राजनीतिज्ञ अपनी बनाई नीतियो के तहत मिलकर देश को बेचते है अपनी जेबे भरते है अपनी सात पुश्तो का भला हो जाये उस हद तक लूटते है देश को और जनता के हक के पैसे को ….
क्या ये लोकतंत्र है ??? नहीं …हर ५ साल में वोट डालकर जनता चुने और ये नेता अपनी कुर्सी के नशे में अपने स्वार्थी हो उसकी पूर्ति मै जुटे रहते हैजनतको बेवकूफ बनते है और जनता बनती है और नेता अपनी तिजोरिया भरते रहते है.. एक वक्त था जब भारत की जनता ही निर्णय लेती थी और उनके द्वारा निर्वाचित सरकार उसपर कार्य करती थी ये १८६० तक चला यू तो कहने को देश आजाद हो चुका है लोकतंत्र है.. पर है कहाँ????? लोकतंत्र दिखता क्यों नहीं???? इसलिए जनता का जागरूक होना अतिआवश्यक है इसीलिए हमे बहुत सोच समझकर विवेक से देश को चलाने के लिए प्रतिनिधि चुनने होंगे …..
भ्रष्टाचार को मिटाना है तो हमे खुद पर सयम रखना होगा क्यूंकि हम अपने अंतर्मन में झांके तो पायेंगे कि इसकी शुरुआत तो हम खुद ही करते है जब जनता खुद को व्यवस्थित कर कानून के दायरे मै चलेगी तो हम उन भ्रष्ट नेताओ,मंत्रियो,बाबुओ ,अफसरों,को रोक पाएंगे हमारे देश में
भ्रष्टाचार,अनैकतिकता,ने जड़े इतनी मजबूत जमाई है कि न्याय,ईमानदारी,नैतिकता थककर चूर
हो गए है ; भ्रष्टाचार कैंसर के रोग कि तरह फ़ैल गया है इस वक्त कि सबसे बड़ी बीमारी है
सबसे बड़ा मुद्दा है तो इस बीमारी से हिम्मत कर लड़ना होगा सच्चाई की राह पर चले तो भारत फिर सोने कि चिडया कहलायेगा वरना मशाले जलाने से,नारे लगाने से,अनशन पर बैठने से ये जंग नहीं जीत पाएंगे ..हर काम मै चाहे विधालय मै दाखिला हो ,ट्रेन की टिकट ,मुकदमा कचहरी ,अस्पताल मै डॉक्टर को दिखने या मंदिर मै दर्शन रिश्वत हम आम जनता खुद ही देते है यहाँ तक कि अपने बच्चों को भी रिश्वत खोरी माता पिता खुद ही देते है पास हो तो घड़ी मिलेगी वरना छड़ी ही मिलेगी..एक बार सब ठानकर तो देखे कि रिश्वत नहीं देंगे तो न रहेगा भ्रष्टाचार न रहेगा भ्रष्टाचारी जब हर कार्य सही तरीके से किए जायेंगे तो जो १०० रूपया जनता के लिए है वो उस तक पूरा पहुचेगा जो अब तक १५ रूपये जनता तक और ८५ रूपया बिचोलियो नेताओ अधिकारियो कर्मचारियो दलालों कि जेब मै जाता है सबका पेट भरा होगा तो सब और खुशहाली होगी सबके पास अपने हिस्से कि खुशी होगी अपनी जेब में अपना पैसा होगा पेट मै रोटी होगी रिश्वत देने लेने का चलन खतम होगा देश हरा भरा होगा नेता अपनी कुर्सी का लाभ उठाने कि जगह देश के लिए काम करेगा भ्रष्टाचार स्वयं खतम होगा जब उसे जनम देने वाला कारण ही खतम हो जायेगा ……………………….
चरित्रवान और अपने अधिकारियो से शिक्षित जनता को अपने चरित्र में बदलाव लाकर भेदभाव ,जातिवाद ,भाई भतीजावाद,धार्मिक संकीर्णता को त्याग “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय “ का चरित्र अपने अंदर निर्मित करना होगा क्यूंकि जैसा समाज होगा वैसे वहाँ के नुमाइंदे ……..
चलिये आज से हम संकल्प ले कि हम स्वार्थी दृष्टिकोण का त्याग कर अपने सभी भारतीय बंधुओ का हित सामने रख कर अपने कार्यकलाप करे..स्वस्थ स्वार्थहीन कानून के दायरे में चलते नैतिकता से भरपूर भ्रष्टाचार से रहित पूर्ण विकासशील भारत का सपना साकार करे जिससे अपने भारत देश का नाम सबसे ऊपर गिना जाये और नागरिक सुखी जीवन जी सके ……..लोकतंत्र (सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय)!!!

भारत एक लोकतंत्र देश ???
भारत एक लोकतंत्र देश ???

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